नई दिल्ली, जून 22 -- कितनी बार हादसे होते हैं, कितनी तरह से मौत हमारे सामने आती है, अपनों की मौत होती है, लेकिन हम आज तक मौत को समझ नहीं सके, क्योंकि मौत का दुख असहनीय मालूम होता है। दुख ढूंढ़ने कहीं जाना नहीं पड़ता, लेकिन दुख का पहाड़ भी टूट पड़े, तब भी हम उससे दोस्ती करना जान न सके। क्यों आदमी सीखता नहीं? ओशो के साहित्य-सागर में मुझे इसका जवाब मिला। उनका एक-एक विचार नगीने की तरह है। पहले तो हम पूरे मन से दुख से गुजरते नहीं, उससे बचते हैं। पलायन को अपना रास्ता बनाया हुआ है। कैसी-कैसी तरकीबें ढूंढ़ते हैं... हमारा प्रियजन मर जाता है, तो फौरन हम बचने की तलाश में लग जाते हैं। मृत्यु का दुख नहीं भोगते। पूछने चले जाते हैं पंडित से, पुरोहित से कि हमें सांत्वना दो। वे कहते हैं, आत्मा अमर है। पत्नी मर गई या पति मर गया या बेटा मर गया; मौत सामने खड़ी ह...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.