नई दिल्ली, जून 8 -- ध्यान के जगत में अक्सर कहा जाता है कि क्रोध और काम मनुष्य के प्रबल शत्रु हैं, अगर इनको जीत लिया, तो ध्यान में उतरना आसान हो जाता है। लेकिन ये तो प्रगट शत्रु हैं, असली दुश्मन छिपे हुए होते हैं और चूंकि वे छिपे हुए हैं, उनको देखना मुश्किल होता है। जैसे, मोह। मोह को जानना इसलिए मुश्किल है, क्योंकि जब वह घेर लेता है, तब हमारा होश ही खो जाता है। अगर मोह का विज्ञान जानना है, तो गीता का वह प्रसिद्ध श्लोक देखें, जहां कृष्ण बहुत वैज्ञानिक तरीके से एक-एक भाव की परतें खोलते हैं- क्रोध से जनमता है मोह; फिर मोह स्मृति पर पर्दा डालता है और स्मृति के खोने से बुद्धि का नाश होता है। फिर बुद्धि के नाश से सर्वनाश! मानो ये विनाश की सीढ़ियां हैं, बहुत तर्कसंगत। इन सीढ़ियों में मोह पर कभी ज्यादा चर्चा नहीं होती, लेकिन मोह क्रोध से भी सबल है।...
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