नई दिल्ली, नवम्बर 7 -- चिन्मय ने पूछा है, इस खोपड़ी से कैसे मुक्ति पाई जाए? इसीलिए आपकी शरण आया हूं। खोपड़ी से मुक्त होने का ख्याल भी खोपड़ी का ही है। मुक्त होने की जब तक आकांक्षा है, तब तक मुक्ति संभव नहीं। क्योंकि आकांक्षा मन का ही जाल और खेल है। मन संसार ही नहीं बनाता, मोक्ष भी बनाता है और जिसने यह जान लिया, वही मुक्त हो गया। साधारणतः ऐसा लगता है कि मन ने बनाया है संसार, तो हम मन से मुक्त हो जाएं, तो मुक्त हो जाएंगे। वहीं भूल हो गई। वहीं मन ने फिर धोखा दिया। फिर उसने जाल फेंका। फिर तुम उलझे। फिर नया संसार बना। मोक्ष भी संसार बन जाता है। संसार का अर्थ क्या है? जो उलझा ले, जो अपेक्षा बन जाए, वासना बन जाए, तुम्हारा भविष्य बन जाए। जिसके सहारे और जिसके आसरे और जिसकी आशा में तुम जीने लगो, वही संसार है। दुकान पर बैठे हो, इससे संसार में हो; मंदिर...
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