नई दिल्ली, जुलाई 23 -- समष्टि की भावना जब आती है, तब दुष्कर्म खत्म होने लगते हैं। संपूर्ण सृष्टि में आज जो अव्यवस्था मची है, वह समष्टि या समाज के बारे में न सोचने के कारण ही है। हम सोच नहीं पा रहे हैं, इसका एकमात्र कारण है कि हमारी शिक्षा, हमारा सान्निध्य श्रेष्ठजनों के साथ नहीं है। शिक्षा हमारी नहीं है, शिक्षा का परिपक्व स्वरूप नहीं है, प्रयोगात्मक स्वरूप नहीं है। यदि स्वरूप परिपक्व हो जाए, तो सब पता लग जाए और आदमी गलत दिशा में कभी न जाए। कुछ ही दिनों पहले मैंने एक लेख पढ़ा था कि कैसे अमेरिका में पैसा उत्पादन की नीति को तैयार किया गया। विचित्र स्थिति है, केवल पैसा और भोग। भोग में सब आ जाता है, आंखों से, जीभ से, कानों से, जननेंद्रिय के माध्यम से, तमाम जो सुख के साधन हैं, उन्हें प्राप्त करने के उद्देश्य से ही सब कुछ करें, तो पैसे का बड़ा य...