सहारनपुर, अप्रैल 18 -- गंगोह अंजुमन उर्दुअदब द्वारा आयोजित शेरीमहफिल के अध्यक्षता उस्ताद शायर नसीम अय्यूबी, संचालन वासिल खान अलिफ ने किया। महफिल के शायराना कलाम जिन पे तकिया था, वही पत्ते हवा देने लगे छंद पर शुरुआत करते हुए मुहम्मद उसामा ने पढ़ा मैंने कब चाहा था ऐसा क्यूं भला देने लगे, आप तो मेरी वफाओं का सिला देने लगे। वासिल खान ने अपने इस शेर पर जमकर वाहवाही लूटी कि मौत की दहलीज तक ले आए सब अपने तो फिर, मेरे दुश्मन मुझकों जीने की दुआ देने लगे। नानौता से आए मेहमान शायर शोक आब्दी ने अपने इस शेर से महफिल को बुलंदियों तक पहुंचा दिया कि भाई की जड़ें काट रहा है भाई, आज मां बाप को बच्चे भी दगा देने लगे। डॉ. युसुफ रशीद अर्शी के क्या हुआ है उनको अर्शी किस ने बहकाया उन्हें, हम वफा करते हैं उन के वो जफा देने लगे और नौशाद नाज के शेर आज ये किस मोड़ पर ...