नई दिल्ली, जुलाई 4 -- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को जोड़ना ऐतिहासिक दस्तावेज की आत्मा में अनावश्यक हस्तक्षेप था। यह बदलाव न केवल संविधान निर्माताओं की मूल भावना के विरुद्ध था, बल्कि इससे देश की राजनीति में एक नई और विकृत सोच पैदा हुई थी। 'धर्मनिरपेक्ष' का अर्थ होता है किसी भी धर्म के प्रति निरपेक्ष रहना। मगर भारत कभी भी धर्म-विरोधी नहीं था, इसलिए इसके दुरुपयोग से यह धीरे-धीरे हिंदू विरोधी मानसिकता को बढ़ावा देने का औजार बन गया। राजनीतिक दलों ने 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अल्पसंख्यक' जैसे शब्दों को अपने-अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया। प्रस्तावना में किए गए इन संशोधनों के सहारे नेताओं ने विशेष समुदायों को आरक्षण, अनुदान और अन्य लाभ देकर थोक में उनका वोट हासिल किया। इस प्रक्रि...