नई दिल्ली, जुलाई 30 -- यह साहित्य के इतिहास में दर्ज है। 4 अप्रैल, 1935 को वह दिल्ली जंक्शन पर उतरे। मुंबई से आए थे। बॉम्बे टॉकीज के संस्थापक हिमांशु राय ने उन्हें रोकने की खूब कोशिश की थी, मगर प्रेमचंद का मुंबई छोड़ने का मन बन चुका था। बनारस लौटने से पहले उन्होंने दिल्ली में कुछ दिन बिताने का फैसला किया, ताकि साहित्यिक साथियों से मिल सकें। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उर्दू शिक्षक और इन-हाउस पत्रिका रिसाला के संपादक प्रोफेसर अकील ने उनकी मेजबानी की। उस वक्त जामिया का कैंपस दिल्ली के करोलबाग में था। प्रेमचंद तब तक गोदान, गबन, निर्मला और रंगभूमि जैसे उपन्यास और ढेर सारी कहानियां लिखकर साहित्य जगत के सिरमौर बन चुके थे। जामिया में उनकी मौजूदगी से हलचल मच गई। छात्र और शिक्षक प्रेमचंद से मिलने प्रोफेसर अकील के घर पहुंचने लगे। दूसरे दिन जामिया ...