संभल, फरवरी 24 -- देश में तेजी से बदलते दौर और आधुनिकता की लहर के चलते कुम्हारों का परंपरागत व्यवसाय संकट में आ गया है। कभी समाज की रीढ़ कहे जाने वाले कुम्हार आज मिट्टी न मिलने व बढ़ती लागत और सरकारी योजनाओं की विफलता के कारण अपने पुश्तैनी काम को छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। दीपावली जैसे त्योहारों पर भले ही मिट्टी के दीपकों और बर्तनों की मांग अचानक बढ़ जाती है, लेकिन सालभर यह व्यवसाय संघर्ष कर रहा है। जिससे कुम्हारों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आज के इस आधुनिक दौर में कुम्हारों के लिए सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की अनुपलब्धता है। चिकनी मिट्टी, जो मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाने के लिए जरूरी होती है। अब आसानी से उपलब्ध नहीं है। सरकार की कई नीतियों और पुलिस बैरियर के चलते कुम्हारों को मिट्टी खरीदने तक में परेशानी का सामना करना पड़ता...