नई दिल्ली, अक्टूबर 16 -- कुछ महात्माओं या संतों ने ईश्वर से प्रेम करने की बात की है, लेकिन अब जब आपके पास एक तार्किक मन है, सोचने-समझने वाला, संदेह करने वाला और प्रश्न करने वाला मन है, तो ईश्वर से प्रेम की बात न करें, इसका कोई अर्थ नहीं है। आप ईश्वर या स्रष्टा के बारे में सोचते हैं, तो इसका एकमात्र कारण यह है कि आपने सृष्टि का अनुभव किया है। आपके आने से पहले वह सब कुछ यहां था, जिसे आप सृष्टि कहते हैं, इसलिए आपने सहजता से यह मान लिया कि किसी ने इसे जरूर बनाया होगा, और फिर आपने उस स्रष्टा को नाम व रूप देना शुरू किया। इसलिए स्रष्टा का विचार केवल सृष्टि के माध्यम से ही आपके पास आया। अब आप सृष्टि से घृणा करते हैं, अपनी बगल में बैठे व्यक्ति से घृणा करते हैं और फिर कहते हैं कि आप ईश्वर से प्रेम करते हैं, तो इसका सचमुच कोई अर्थ नहीं है। यह आपको क...