नई दिल्ली, जुलाई 19 -- इस कॉलम के सभी शब्द देश के उन माननीय सांसदों को समर्पित हैं, जिन्हें उनके मतदाताओं ने प्यार और सम्मान के साथ चुना है। वे यकीनन संसद सदस्य कहलाने का गौरव रखते हैं, पर उन्हें हर क्षण याद रखना चाहिए कि यह संसद देश के आम आदमी की धरोहर है। इस नाते उन पर आम आदमी की आकांक्षाओं और उसकी हित-रक्षा की जिम्मेदारी है। क्या वे इस महत्वपूर्ण दायित्व का पालन कर रहे हैं? ऐसा लगता है, जैसे सड़कों पर उपजी कड़वाहट संसद में कब्जा जमाकर बैठ गई है। भरोसा न हो, तो इस आंकड़े पर नजर डाल देखिए। पिछली, यानी 17वीं लोकसभा में सिर्फ 1,354 घंटे काम हुए। इसके 15 में 11 सत्र समय से पहले अवसान के शिकार बने। उस दौरान लोकसभा में 222 विधेयक पारित हुए, जिनमें से मात्र 16 प्रतिशत स्थायी समिति के पास गए। पहली लोकसभा में साल में 135 दिन सदन जुटता था, जबकि 17व...