नवादा, अगस्त 17 -- नवादा। राजेश मंझवेकर भारतीय मिट्टी कला का कभी स्वर्णिम काल रहा था। विशेष रूप से मुगल काल को मिट्टी कला का स्वर्णिम काल माना जाता था। इस दौरान फारसी और भारतीय कलात्मक प्रभावों के मिश्रण से उत्कृष्ट चमकदार टाइलें, सजावटी कटोरे और जटिल चीनी मिट्टी की कलाकृतियां बनाई गईं, जो भारतीय कुम्हारों की प्रतिभा को दर्शाती हैं। मुगल शासकों के संरक्षण में, भारत में मिट्टी की बर्तन कला अपने चरम पर पहुंच गई। कालांतर में इसने अपनी प्रतिष्ठा बचा कर रखा, लेकिन धीरे-धीरे कद्रदानों की कमी आती गयी और मिट्टी कला विलुप्त होने के कगार पर पहुंचती चली गयी। वर्तमान में ले-दे कर बस पूजा-अनुष्ठान में जरूरी मिट्टी के बर्तनों के अलावा चाय की कपटी तक ही मिट्टी कला जीवित रह गयी है। हालांकि वर्षभर में चार-पांच बार मूर्ति बनाने का काम भी कुम्हारों को मिल ज...