पाकुड़, अप्रैल 29 -- महेशपुर। जंगल व पेड़ न सिर्फ प्रकृति वरन पर्यावरण के संरक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं। इससे हटकर देखा जाए तो यही वृक्ष फल तथा अन्य फूलों से मानव जाति के आय का स्त्रोत भी हैं। यह बात विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी महिलाओं के आय का साधन भी बनती है। उनके आजीविका का माध्यम है। प्रखंड के सभी आदिवासी बहुल इलाकों में जंगल का पीला सोना कहे जाने वाले महुआ फूल टपकना शुरू हो गया है। मार्च एवं अप्रैल के महीने में महुआ वृक्षों में महुआ के फूल आने लगते हैं। महुआ की महक से जंगल का वातावरण सुगंधित हो गया है। फूलों को इकट्ठा करने के लिए आदिवासी ग्रामीण महिलाएं सुबह से ही टोकरी लेकर अपने-अपने घरों से निकल पड़ती हैं। महुआ फूल ग्रामीणों को ऐसे समय में रोजगार देता है जब वे बेरोजगार होते हैं। लेकिन इससे केवल शराब ही नहीं बनती बल्कि ...