नई दिल्ली, जुलाई 19 -- सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार एक थे समय से आगे के कवि। जाने किस पिनक में एक दिन अपने समय के 'डॉक्टर फिक्सइट' उर्फ फिक्साचार्य ने एक कवि को समय से आगे का कवि 'फिक्स' कर दिया, तो वह हो गए नए डॉ फिक्सइट! उनको देख साहित्य के हम नौनिहाल कोरस सा गाते- देखो वो आ रहा है आगे का कवि... देखो वो जा रहा है आगे का कवि। वह जब तक रहे, आगे के कवि के नाम से ही जाने जाते रहे। वह अपने समय से कितने आगे रहे, कैसे रहे, इसकी न किसी ने छानबीन की, न आगे के कवि महोदय ने ही चाहा कि कोई बताए कि वह अपने समय से ठीक कितने आगे हैं? कोई पूछता कि वह कितने आगे के हैं? तो उनके 'फैन' कहते, वह आगे तो हैं, लेकिन कितने हैं, यह कोई नहीं बता सकता, क्योंकि कभी किसी ने नापा ही नहीं और नापा इसलिए नहीं कि नापने का कोई पैमाना ही नहीं था। हिंदी में हर बंदा इसी तरह...
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