सिमडेगा, दिसम्बर 6 -- सिमडेगा, प्रतिनिधि। एक ओर सरकार गांव की सरकार को सशक्त बनाने के दावे कर रही है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है। लगभग पिछले ढ़ाई वर्षों से विकास फंड और मानदेय से वंचित पंचायत के मुखिया अब भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं। इन मुखियाओं को न अधिकार मिल रहा है और न ही संसाधन। जिसके कारण गांव का छोटा-मोटा विकास भी ठप हो गया है। पंचायती राज व्यवस्था का मूल स्तंभ माने जाने वाले मुखिया आज सबसे उपेक्षित प्रतिनिधि बन गए हैं। जिन ग्रामीणों ने विश्वास के साथ उन्हें वोट देकर गांव की कमान सौंपी थी। उन्हीं के सामने अब उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। करीब ढ़ाई वर्षों से न तो उन्हें सरकार की ओर से मानदेय मिला है और न ही विकास कार्यों के लिए कोई फंड। नतीजा यह है कि गांव की छोटी-छोटी जरूरतें तक पूरी नहीं हो पा रही हैं। नाली, ग...