नई दिल्ली, मई 3 -- गुजरे मंगलवार की सुबह, समय तकरीबन 6 बजे। अचानक फोन की मैसेज टोन बजी। आश्चर्य और आशंका के साथ मैंने फोन उठाया- मेरे एक मित्र के पुत्र का संदेश चमक रहा था। वह पहलगाम की घटना से व्यथित था और उसे शिकायत थी कि सरकार आनन-फानन में कोई कदम क्यों नहीं उठा रही? उसने मुझसे यह भी अपेक्षा की थी कि मीडिया में काम करने के नाते मुझे तत्काल जोरदार कार्रवाई के लिए आवाज उठानी चाहिए। मैं चकित रह गया। उस युवक को मैं बचपन से जानता हूं। यह नौजवान देश के सबसे अच्छे स्कूलों में पढ़ा है और उसके बाद उसने उच्चस्तरीय तकनीकी शिक्षा हासिल की। कॉलेज का कोर्स खत्म होने से पहले ही उसे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई। तब से आज तक तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता हुआ वह अब एक बड़े पद पर है। अपनी समझदारी और सुलझेपन के लिए उसे जाना और माना जाता है, इसीलिए मैंने ...
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