नई दिल्ली, जून 29 -- भारतवर्ष की एक खासियत है। यहां एक अजीब बात दिखती है कि गरीब लोगों के चेहरे पर संतोष की मुस्कान दिखाई देती है। किसी सब्जी वाले या रिक्शा वाले से पूछो, हाल कैसा है, तो आपको जवाब मिलेगा, भगवान की दया से सब अच्छा चल रहा है, सब ठीक है। ये किस बात पर मुस्कराते हैं? इनके 'सब ठीक' का दायरा क्या होता है? कोई जाकर इनके घर और सामान असबाब को देखे, तो अचंभित होगा कि इन हालात में ये मुस्कान कहां से आती है? इसके उलट धनवानों को देखो, तो उनके पास सब कुछ है, लेकिन अनुग्रह की मुस्कान बहुत महंगी हो गई है। हमेशा तनाव में, हमेशा परेशान दिखेंगे। इसका क्या गणित होगा? यह एक विपरीत गणित है, जो तर्क के पार है। जो भी संपन्न होते हैं, उनमें एक बात का अभाव है, वह है अहोभाव! आदमी जितना पढ़ा-लिखा, काम में कुशल होता है, उतना ही उसका अहोभाव कम होता जात...
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