सीतापुर, अप्रैल 29 -- सीतापुर। एक समय था जब गांव-गांव, शहर-शहर में लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य की गूंज सुनाई देती थी। तीज-त्योहारों से लेकर सामाजिक आयोजनों तक, नृत्य हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग था। लेकिन आज, बदलते समय और सरकारी नीतियों की अनदेखी के कारण, नृत्य कला हाशिये पर धकेल दी गई है। जिले में ऐसे कलाकारों की संख्या कम नहीं है जिन्होंने अपना जीवन इस कला को समर्पित कर दिया, लेकिन उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने और उससे जीविकोपार्जन करने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहे हैं। इन कलाकारों के सामने सबसे बड़ी समस्या सरकारी सुविधाओं का अभाव है। जिले में नृत्य कलाकारों के प्रशिक्षण के लिए कोई समर्पित सरकारी संस्थान या अकादमी नहीं है। जो इक्का-दुक्का निजी संस्थान चल भी रहे हैं, उनकी फीस आम कलाकारों के लिए वहन करना मुश्किल है। सरकारी स्तर पर न तो ...
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