सहारनपुर, जून 26 -- देवबंद का यह उद्योग आजादी के पहले से ही सक्रिय रहा है। वर्ष 1947 से लेकर 2017 तक गंडासा और फावड़ा उद्योग को करमुक्त व्यापार की श्रेणी में रखा गया था। इसका सीधा लाभ यह हुआ कि कम लागत, सस्ते श्रमिक, और पारंपरिक तकनीकों की बदौलत इस उद्योग ने पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश सहित देश के कोने-कोने में अपनी मजबूत पकड़ बनाई। ये औजार खेती-किसानी से जुड़े समुदायों की पहली पसंद बन गए थे। लेकिन पिछले एक दशक में जिस रफ्तार से यह उद्योग फला-फूला था, उसी रफ्तार से वह अब गिरावट की ओर अग्रसर है। उद्यमियों के अनुसार, तीन बड़े झटकों ने इस उद्योग की रीढ़ तोड़ दी है-नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना महामारी। जहां नोटबंदी से नकद कारोबार करने वाले लघु उद्योग प्रभावित हुए, वहीं 2017 में 18 प्रतिशत जीएसटी लागू होने से यह उद्योग महंगे कर के बोझ तले...
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