सहारनपुर, अप्रैल 20 -- जनपद में एक लाख से अधिक ठेला-रेहड़ी वाले सड़कों के किनारे छोटा-मोटा व्यापार कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है। इनमें से अधिकांश के पास कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। वे कभी फुटपाथ तो कभी सड़क किनारे, ट्रैफिक की चहल-पहल और प्रशासन की नजर से बचते हुए काम करते हैं। कई बार इन्हें नगर निगम या पुलिस द्वारा अतिक्रमण के नाम पर परेशान किया जाता है। स्थायी पंजीकरण या पहचान पत्र न होने के कारण ये खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। अगर वेडिंग जोन बने तो काफी राहत मिले। सड़कों के किनारे ठेलों, खोमचों और टेंटों पर अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं। पंचर लगाने वाले और चाय बेचने वाले, जूते बनाने वाले तक ये सभी वे लोग हैं जो अपने हाथों की मेहनत से न सिर्फ खुद का बल्कि अपने परिवार का पेट पालते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब सरकार वेंडरों को...