भागलपुर, अगस्त 20 -- प्रस्तुति: श्रुतिकांत आज की शिक्षा प्रणाली में बच्चों का बचपन भारी बस्तों के बोझ तले दबता जा रहा है। निजी स्कूलों और प्रकाशकों के गठजोड़ ने किताबों को शिक्षा का माध्यम नहीं, बल्कि व्यापार का साधन बना दिया है। पहली कक्षा के नन्हें बच्चों तक को 10-12 किताबें थमा दी जाती हैं, जिससे वे शारीरिक थकान और मानसिक दबाव झेलने को मजबूर हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय शिक्षा नीति स्पष्ट रूप से बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम करने की बात करती है, लेकिन हकीकत इसके उलट है। कागजों पर बने नियम सिर्फ दिखावा बनकर रह गए हैं। नतीजा यह है कि बचपन, खेल और जिज्ञासा जैसे जीवन के सबसे सुंदर पहलू खोते जा रहे हैं। इससे आने वाली पीढ़ी ज्ञान और रचनात्मकता की बजाय सिर्फ थकान और निराशा लेकर बड़ी होगी। सुबह के सात बजे का वक्त है। सूरज धीरे-धीरे न...