रामगढ़, मई 25 -- गोला। गोला प्रखंड के सुतरी, रकुवा, लिपीया, मगनपुर, रोला, कोराम्बे व अन्य गांवों में लगभग 4 से 5 हजार तुरी समाज के लोग निवास करते हैं। पीढ़ियों से ये सब बांस की बुनाई कर जीवन यापन करते आ रहे हैं। बांस की टोकरी, सूप, दउरा बनाना इसके जीवन का अभिन्न अंग है। पीढ़ियों से बांस का सामान बनाना और इसे बाजार में बेचकर परिवार की भूख मिटाना उद्देश्य रहा है। लेकिन बाजार के अभाव और सरकारी मदद के अभाव में उनकी कलाएं दम तोड़ रही हैं। हिन्दुस्तान के बोले रामगढ़ टीम से बांस के कारीगरों ने अपनी व्यथा साझा की। गोला प्रखंड के सुतरी, रकुवा, लिपीया, मगनपुर, रोला, कोराम्बे आदि गांव के सैकड़ों तुरी परिवार के लोग बांस का सामान बनाकर अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं। कई पीढ़ियों से तुरी समाज में बांस के सूप, दउरा, टुपला, डाला और अन्य सामान बनाने की परंपरा...
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