मेरठ, जुलाई 30 -- मेरठ। जब सावन की फुहारें पड़ती थीं, तब हर घर में झूले, हंसी-ठिठोली और सावन के गीत गूंजते थे। तीज के स्वागत में महिलाएं झूला झूलते हुए लोकगीत गाती थीं। अब यह नजारे बस यादों में सिमट गए हैं। वक्त के साथ तीज के गीतों की मिठास भी फीकी पड़ गई है। आधुनिकता की आंधी में मानो तीज का त्योहार कहीं खो सा गया है। अपने शहर की बात करें तो यहां महिलाओं के नाम सिर्फ एक पार्क है, जिसको तीज से पहले तैयार किया जा रहा है। यहां अब झूले लगाए जा रहे हैं और तीज को लेकर तैयार किया जा रहा है, अगर यह हमेशा ही ऐसा सजा धजा रहे तो महिलाओं के लिए मानों रोजाना ही तीज होगी। पुराने वक्त में सावन के आते ही गांवों में आम और पीपल के पेड़ों पर रस्सियों से बने झूले लग जाते थे। महिलाएं और लड़कियां टोली बनाकर गीत गाती थी। कोई मंजीरा लाती तो कोई ढोलक। हंसी-ठिठोली...