मिर्जापुर, मार्च 17 -- न भूली-न बिसरी, जड़ता से आजाद है मिर्जापुर की लोकगीत 'कजरी। उस कजरी का करेजवा कहे जाने वाले कजरहवा पोखरा पर कभी तीज पर बालिकाएं जुटती थीं। गीत गाते हुए पोखरे की मिट्टी घर ले जाती थीं। उस मिट्टी में जरई जमती थी। आज 'कजरी का करेजवा अतिक्रमण-गंदगी से कराह रहा है। मलजल से ऐतिहासिक जलाशय मैला हो गया है। पोखरे के नाम पर इर्दगिर्द बसा मोहल्ला सीवर-सड़क और पेयजल आदि समस्याओं से परेशान है। लोग अमृत योजना के तहत जलाशय के जीर्णोद्धार में दूसरे समाधान भी देख रहे हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला कजरहवा पोखरा कभी धार्मिक क्रियाकलापों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था। पोखरा पर जुटे बाशिंदों ने 'हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान समस्याओं का गठरी खोल दी। मीरा ने बताया कि कजरहवा पोखरा सवा सौ साल से ज्यादा पुराना है। धीरे-धीरे शहरीकरण बढ़ा और इ...
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