मिर्जापुर, फरवरी 21 -- शायद बंधुआ मजदूरों से भी बदतर है पंचायत सहायकों की जिंदगी! उन्हें न तो ढंग का मानदेय मिलता है न ही बैठने की जगह। ऐसा भी नहीं कि उनका काम कम हो। वे ग्राम विकास अधिकारी के बराबर जिम्मेदारी निभाते हैं। जन्म-मृत्यु रजिस्टर अपडेट करने से शौचालय निर्माण की रिपोर्ट उन्हें ही बनानी पड़ती है। और तो और, प्रधान से स्टेशनरी और इंटरनेट डाटा नहीं मिलने पर उन्हें खुद के पैसे से इनका इंतजाम करना होता है। मलाल उन्हें सिर्फ इस बात का है कि सबकुछ जानने के बाद भी हुक्मरान उनसे सौतेला व्यवहार करते हैं। उनकी गुहार-गुजारिश का उनके ऊपर कोई असर नहीं होता है। ग्राम पंचायतों का कामकाज बेहतर करने के लिए पांच वर्ष पहले संविदा पर पंचायत सहायक तैनात किए गए। प्रदेश सरकार ने तय किया कि उन्हें छह हजार रुपये प्रतिमाह मिलेंगे। जिम्मेदारी सौंपी गई कि व...