मिर्जापुर, फरवरी 17 -- गांवों में मनरेगा योजना भी दिहाड़ी श्रमिकों की बेरोजगारी दूर नहीं कर पा रही है। काम न होने और समय से मजदूरी का भुगतान न होने से श्रमिक काम की तलाश में रहे हैं। जाड़ा-गर्मी हो या बरसात, हर सुबह सैकड़ों श्रमिक शहर में काम की उम्मीद में खड़े दिख जाएंगे। कोई 10 दिन तो कोई 15-20 दिनों से आता है और काम न मिलने की निराशा लिए लौट जाता है। उनके लिए शेड, पीने के पानी का इंतजाम नहीं है। सार्वजनिक शौचालय न होना भी अखरता है। शहर में दो ऐसे ठिकाने हैं जिनके बारे में सभी जानते हैं कि वहां दिहाड़ी मजदूर आसानी से मिल जाएंगे। वे हैं- घंटाघर और तेलियागंज। यहां 500 से 700 मजदूर प्रतिदिन जुटते हैं। ये ठिकाना तब से है जब लोग चार आना की कीमत जानते थे। मेहनतकश हाथ आज दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं। पहले केवल 25 प्रतिशत मजदूर रोजगार की त...