मिर्जापुर, जून 21 -- कंबल की कीमत सब जानते हैं, पर बुनकरों की नहीं। कंबल गरीब की रजाई है, मजदूर की रात है, मां की ममता का लिबास है। इसकी गर्माहट बुनकरों के मेहनतकश हाथों की देन है। वह हुनर ठंडा पड़ रहा है। काम ठप, बुनकरों की आंखों में बेचैनी है। करघे गिनती के बचे हैं, सरकारी योजनाएं बस नाम की हैं। परिवार और बच्चों का खर्च कैसे चलेगा, जब काम ही न हो। बुनकर चाहते हैं कि उनकी मजदूरी बढ़ाई जाए, बुनकर कार्ड बने और योजनाओं का उन्हें सीधा लाभ मिले। नगर के पथरहिया स्थित कंबल कारखाना और संगमोहाल स्थित छोटा मिर्जापुर की गलियों में करघों की खटर-पटर की आवाज गूंजती थी। यहां के बुनकरों के बुने कंबल की पहचान दूर-दूर तक थी। पुलिस के साथ तीन दशक पहले सेना के जवानों को भी आपूर्ति की जाती थी। वे कंबल मजबूत, टिकाऊ और गर्माहट से भरपूर होते थे। आज कंबल कारखाने...