मिर्जापुर, जुलाई 18 -- चकबंदी लेखपाल खेतों की नाप-जोख से लेकर अदालतों के विवाद निपटाने तक में सबसे अहम कड़ी हैं। इसके बावजूद उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। न दफ्तरों में बैठने की व्यवस्था है, न पैमाइश के लिए जरूरी उपकरण ही हैं। चक के सीमांकन जैसे जोखिम भरे काम में सुरक्षा नहीं मिलती है। सबका भार लेखपाल पर है, मगर अधिकार शून्य। जिनकी मेहनत से चकबंदी प्रक्रिया चल रही है, वे उपेक्षा में घुट रहे हैं। दशकों से राजस्व सुधार की रीढ़ बने ये लेखपाल अपने हक के लिए परेशान हैं। चकबंदी लेखपाल खेत-खलिहानों की नाप-जोख करते हैं। ग्रामीणों के भूमि विवाद सुलझाते हैं। चकबंदी की जटिल प्रक्रिया को जमीन पर उतारते हैं, लेकिन खुद उनके पांव तले जमीन खिसकी हुई है। जिन कंधों पर राजस्व व्यवस्था टिकी है, वे कंधे खुद बोझ से झुके हैं। न बैठने की जगह, न तक...
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