मिर्जापुर, मई 6 -- तबला-ढोलक, हारमोनियम, सितार जैसे वाद्ययंत्र संगीत की आत्मा हैं। इन्हें बजाने वाले कलाकार मंच पर चमकते हैं, लेकिन उन्हें बनाने वाले कारीगर गुमनाम हैं। उनके हाथों की थाप शास्त्रीय संगीत की नींव है। पीढ़ियों से चले आ रहे हुनर से ये सुरीले साज जन्म लेते हैं। विडंबना यह कि इन्हें तराशने वाले हाथ कई मुश्किलों से जूझ रहे हैं। कच्चा माल महंगा है। मेहनत के मुकाबले आमदनी कम है। सरकारी योजनाओं का भी उन्हें लाभ नहीं मिल पा रहा है। हर का एक पुराना मोहल्ला है- घुरहूपट्टी का गौरियान। यहां बने तबले की थाप देश के कोने-कोने में गूंजती है। यहां की गलियों में हर रोज सुर, ताल और पसीने की बुनाई होती है। तबला, ढोलक, मृदंग, नाल, पखावज, हारमोनियम, सितार और गिटार- ये सब इंस्ट्रूमेंट यहां के कारीगर बनाते हैं। इन वाद्य यंत्रों को दुनिया तक पहुंचान...
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