प्रतापगढ़ - कुंडा, मार्च 16 -- भोर के चार बजे से शाम छह बजे तक कड़ी मेहनत करना इनकी दिनचर्या है। इसके बाद इन्हें एक बोरी उठाने के लिए पांच रुपये मिलते हैं। इससे दो जून की रोटी जुटाने में भी तमाम मुश्किलें आती हैं। जबकि इसी पैसे से इन्हें अपने साथ पूरे परिवार का भरण पोषण करना होता है। खास बात यह कि महुली मंडी में किसी ऐसी कैंटीन की सुविधा भी नहीं है जहां इन्हें किफायती दर पर नाश्ता और भोजन मिल सके। इन्हें चिकित्सा, शिक्षा जैसी सरकारी सुविधाएं भी नहीं मिलती। मंडी में दिन रात मेहनत करने के बाद जो पैसे मिलते हैं यही उनकी पूंजी है। कभी 300 तो कभी 350 रुपये मिल जाते हैं। कभी ऐसा भी होता है कि पूरे दिन में इनकी कमाई 100 रुपये तक ही सिमट कर रह जाती है। इनकी कमाई से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह अपने बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य सहित अन्य सुविधाए...
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