बिजनौर, अप्रैल 10 -- कुम्हार समुदाय पारंपरिक रूप से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करता आ रहा है। यह कला सदियों पुरानी है, लेकिन आधुनिक समय में कुम्हारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सस्ते प्लास्टिक और धातु के बर्तनों के बढ़ते उपयोग, मशीनरी से बने उत्पादों की प्रतिस्पर्धा, कच्चे माल की कमी और समर्थन के अभाव के कारण यह परंपरागत व्यवसाय संकट में है। अगर इनकी समस्या का समाधान हो तो मिट्टी के उत्पाद बनाने की कला एक बड़े रोजगार के साधन में तब्दील हो सकती है। कुम्हार बिरादरी को प्राचीन माना जाता है। जनपद के करीब 500 गांवों में करीब 70 से 80 हजार कुम्हार (प्रजापति) के लोग निवास करते हैं। उनमें से करीब 20 हजार लोग कुम्हार का काम करते है। कुम्हार का काम मिट्टी के साथ मेहनत कर उससे विभिन्न आकार देना होता है। मिट्टी को तालाब से खोदकर लाना...
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