बिजनौर, अप्रैल 18 -- समाज में मास्टर जी कहे जाने वाले दर्जी आज हाशिये पर हैं। दर्जियों के हुनर को मशीनों और फैक्ट्रियों में बने रेडीमेड कपड़े निगलता जा रहा है। कपड़े की खरीदारी से लेकर सिलाई तक का खर्चा, रेडीमेड के मुकाबले लगभग दोगुना हो जाता है। दूसरी तरफ दर्जी का अपना खर्च भी बढ़ गया है-धागा, बटन, जिप और सिलाई मशीनों की मरम्मत जैसी जरूरतें महंगी हो गई हैं। कई दर्जी तो ग्राहकों की कमी के कारण अपना पुश्तैनी धंधा बंद करने पर विचार कर रहे हैं। बिजनौर शहर में मौजूदा समय में करीब 250 टेलर की दुकानें हैं। जिन पर एक हजार से अधिक कारीगर अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं। कुछ दशकों पहले तक सिलाई करने वाले कारीगरियों की यह संख्या इससे कही ज्यादा थी। जैसे शिक्षक को इज्जत के लिए मास्टर साहब कहा जाता है, उसी तरह टेलर को भी इज्जत देने के लिए टेलर मास्टर ...
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