बलिया, फरवरी 16 -- गांवों से निकलकर वे अपने हुनर से तरक्की की कहानियां लिख रही हैं। घरों-बाजारों तक पहुंच रहे कई उत्पादों में उनके हुनर की छाप दिखती है। दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रहीं इन लखपति दीदियों की राह में रोड़े भी कम नहीं हैं। उन्हें पक्का छत और शौचालय के लिए परिक्रमा करनी पड़ रही है। वृद्ध महिलाओं को पेंशन नहीं मिल रही। समूह का सामुदायिक निवेश बहुत कम है। इससे वे अपने रोजगार को बड़ा आकार नहीं दे पा रहीं। आयुष्मान कार्ड के अभाव में इलाज खर्चीला महसूस होता है। शहर से सटे दुबहड़ ब्लाक मुख्यालय के सभागार में 'हिन्दुस्तान से बातचीत करते समय लखपति दीदियां अचानक ही गंभीर हो गईं। सुशीला ने कहा कि स्वयं सहायता समूह से कर्ज लेकर छोटे रोजगार करना आसान नहीं है, जैसा कोई सोचता है। हां, इसे कुछ हद तक 'सहारा कह सकते हैं। छोटे कर्ज से पूंजी...