बलिया, फरवरी 16 -- 'मदरसा नाम आते ही लोग इसे अल्पसंख्यकों के दीनी तालिम से जोड़ते हैं लेकिन ऐसा है नहीं। हिजाब पहनी बेटियों और जालीदार टोपी लगाए लड़कों की अंगुलियां कंप्यूटर के कीपैड पर भी उतनी ही तेजी से खटर-पटर करती हैं। विज्ञान, अंग्रेजी आदि विषय भी ये धड़ल्ले से पढ़ते हैं। बीते तीन दशकों से चल रहे इस बदलाव के बीच जिले में संचालित 183 मदरसा संचालक, प्रबंधक और शिक्षक खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उनकी समस्याएं मानदेय भुगतान, वित्तीय मदद तथा मदरसा एक्ट के इर्द-गिर्द सिमटी हैं। फरोगे तालीम ए विस्वा के परिसर में 'हिन्दुस्तान से चर्चा में अखिल भारतीय मदरसा प्रबंधक संघ के जिलाध्यक्ष इसरार अहमद एडवोकेट ने खुलकर बात रखी। कहा कि अरबी मदरसों, पाठशालाओं को नया लुक देने की करीब तीन दशक पहले बनी योजना अब खटाई में पड़ गई है। आधुनिकीकरण के तहत कु...
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