बलिया, फरवरी 18 -- 'जब तक शिक्षक भूखा है, ज्ञान का सागर सूखा है- यह एक स्लोगन ही वित्तविहीन शिक्षकों के पाठ्यक्रम का पहला और महत्वपूर्ण अध्याय है। बोर्ड परीक्षा, उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन, प्रायोगिक परीक्षा समेत अन्य जरूरी कार्यों के लिए सरकार इन्हें शिक्षक तो मानती है लेकिन इनका दर्द यह है कि जब मानदेय देने की बारी आती है तो 'हम पूर्ण नहीं का सवाल खड़ा कर दिया जाता है। परीक्षाओं और मूल्यांकन का पारिश्रमिक, छात्रों के पंजीकरण शुल्क में निधारित हिस्सा आदि वाजिब हक के लिए भी वे वर्षों से जूझ रहे हैं। टाउन इंटर कॉलेज परिसर में 'हिन्दुस्तान से चर्चा में वित्तविहीन शिक्षकों ने अपनी समस्याओं की 'किताब के पन्ने पलटे। माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा के प्रदेश सचिव डॉ. कृष्ण मोहन यादव ने बताया कि चार दशक से अधिक समय बाद भी सरकारों ने माध्यमि...