बरेली, अगस्त 25 -- बरेली की चहल-पहल से भरी बाजारें जहां रोजमर्रा की जरूरतों का केंद्र हैं, वहीं इन बाजारों को जीवंत बनाए रखने वाले वर्करों की जिंदगी बदहाली में घिरी है। दुकानों, शोरूम, रेहड़ी-पटरी और गोदामों में काम करने वाले ये श्रमिक असंगठित क्षेत्र का हिस्सा हैं, जहां न श्रम कानूनों की प्रभावी मौजूदगी है और न ही सामाजिक सुरक्षा की गारंटी। बरेली जैसे उभरते शहर की बढ़ती अर्थव्यवस्था में इन मार्केट वर्करों की भूमिका अहम है, फिर भी ये अपने अधिकारों, सम्मान और जरूरतों से लगातार वंचित हैं। मार्केट वर्करों को औसतन छह से आठ हजार रुपये महीना वेतन मिलता है, जो न सिर्फ न्यूनतम मजदूरी के मानक से कम है, बल्कि परिवार चलाने के लिए भी अपर्याप्त है। पहले जहां आठ घंटे की ड्यूटी थी, वहीं अब इनसे 10 से 12 घंटे तक काम लिया जाता है, वो भी बिना किसी ओवरटाइम ...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.