फर्रुखाबाद कन्नौज, फरवरी 20 -- परंपरा में रंग भर रहे हैं। लेकिन जीवन बदरंग है। आर्थिक स्थिति आज भी जस की तस है। जैसे-जैसे समय का पहिया रफ्तार पकड़ रहा है, वैसे-वैसे चाक की रफ्तार धीमी होती जा रही है। वजह, प्रशासनिक उपेक्षा और मिट्टी की उपलब्धता न होना है। मिट्टी से जुड़े हैं। मिट्टी के लिए ही भटकना पड़ता है। मिट्टी के लिए 12 साल पहले भूमि पट्टे आवंटित किये गये थे। पर आज तक नापकर जमीन नहीं सौंपी गई। तहसील और अफसरों की चौखट के चक्कर काट-काटकर थक गए हैं। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से बातचीत में कुम्हारों ने अपनी पीढ़ी कुछ इस तरह रखी। कुम्हारों ने कहा कि पूर्वज जिस तकनीक (चाक) से मिट्टी का दीया, घड़ा, कलश, गुल्लक समेत अन्य बर्तन बनाते थे, आज भी वैसे ही काम कर रहे हैं। आधुनिक युग में भी हाथ से चाक चलाना पड़ रहा है। योजना के तहत कुछ गिने-चुने लोगों ...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.