गंगापार, मार्च 1 -- आज के दौर में ऑनलाइन व्यवस्थाएं बढ़ गई हैं या यूं कहें डिजिटाइजेशन का दौर है। इससे ग्रामीण और पंचायतें भी अछूती नहीं हैं। इन्ही व्यवस्थाओं में पंचायतों और ग्रामीणों के सहयोगी के रूप में उभर कर आए हैं पंचायत सहायक, जो ग्राम सचिवालयों में बैठ ऑनलाइन कार्य में संलग्न रहते हैं और सरकारी योजनाओं को सफल बनाने में जुटे हुए हैं। पंचायत सहायक भले ही ग्रामीणों की आस हों पर स्वयं वे सरकार और अपने अल्प मानदेय से निराश हैं। इनका मानदेय मनरेगा मजदूरों से भी कम हैं जिसको पाने के लिए कई कई महीने इन्हें इंतजार भी करना पड़ता है। यही वजह है कि कहीं ज्यादा पैसा मिला तो यह तुरंत अपना पद भी छोड़ देते हैं। कहने को इन्हें रोजगार तो मिला लेकिन गृहस्थी की गाड़ी को इतने कम मानदेय में खींच पाना इनके लिए बेहद मुश्किल होता है। नियुक्ति के बाद से अभी ...