भागलपुर, फरवरी 18 -- रेशम की धागों से विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाने वाले पूर्णिया के सबसे पुराने एवं मूल निवासी 'बुनकर समाज' की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति बदतर है। इनका मूल पेशा ही अब उनके हाथों नहीं रहा। कहा जाता है कि पूर्णिया के बुनकर समाज के हाथों बने हुए कपड़े की विदेशों में खासी डिमांड थी। इस समाज में ऐसे-ऐसे शिल्पकार थे जिनकी हस्तकला (एंब्रॉयडरी) देश ही नहीं बल्कि विदेश के फलक पर परचम लहराती थी। मूल रोजगार छूटने के बाद इस समाज में गरीबी इतनी बढ़ गई है कि यह लोग अपनी मूलभूत जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहे। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान व्यापारियों ने अपना दर्द बयां किया। 80 लाख है बिहार में तांती बुनकर समाज के लोगों की जनसंख्या 02 लाख वोटर पूर्णिया जिले में है बुनकर समाज के 03 लाख से अधिक है बुनकर समाज के लोगों की जनसंख्...
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