देवरिया, फरवरी 14 -- परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए ढाई दशक पहले बेसिक शिक्षा परिषद ने शिक्षामित्रों की नियुक्ति की थी। नियुक्ति के समय से आज तक शिक्षामित्रों का जीवन संघर्ष में ही बीत रहा है। वर्ष 2014 में सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हुआ और वेतन-सुविधाएं बढ़ीं तो लगा कि जीवन की गाड़ी अब पटरी पर आ जाएगी लेकिन तीन साल बाद ही उन्हें वापस शिक्षामित्र के पद पर भेज दिया गया। मात्र 10 हजार रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर वे स्कूल खुलने से लेकर बंद होने तक ड्यूटी करते हैं। उन्हें न तो आयुष्मान कार्ड का लाभ मिलता है और न ईएसआई का। उनके नाम से राशन कार्ड भी नहीं बन पाता। जिनके नाम से राशन कार्ड थे, उनके भी रद्द कर दिए गए। शिक्षामित्र विनय कुमार मिश्र कहते हैं कि अधिकतर शिक्षामित्रों की नियुक्ति वर्ष 2001 से लेकर 2009 के ...