देवघर, फरवरी 25 -- कभी भारतीय समाज और संस्कृति का अभिन्न अंग रहे कुम्हार समुदाय की कारीगरी अब धीरे-धीरे अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। स्वच्छता, स्वास्थ्य और परंपरा के प्रतीक माने जाने वाले मिट्टी के बर्तनों की जगह अब चीनी मिट्टी, प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने ले ली है। परिणामस्वरूप, कुम्हार समाज के युवा अपने पारंपरिक पेशे से दूर होते जा रहे हैं और किसी अन्य आजीविका की तलाश में मजबूर हो रहे हैं। कभी यह समुदाय समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान रखता था, लेकिन बदलते समय और आधुनिक जीवनशैली ने इसे लगभग हाशिए पर ला खड़ा किया है। सरकार और समाज दोनों के ही प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं, जिससे यह कला धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रही है। हिन्दुस्तान अखबार से संवाद के दौरान गोविंद पंडित, बबलू कुमार, शैलेंद्र पंडित, राजेंद्र पंडित, सोहन पंडित, योगेंद्र...
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