गाजीपुर, फरवरी 21 -- वे सुबह खाने की पोटली लेकर काम की तलाश में अपने घरों से निकल जाते हैं। चौराहों पर उनकी आंखें उस व्यक्ति का इंतजार करती हैं जो उनको दिहाड़ी पर काम दे सके। कुछ की उम्मीदें पूरी होती हैं तो बहुतेरे निराश होते हैं। ये श्रमिक महीने में 15 दिन भी काम मिलने को खुशकिस्मती मानते हैं। लेकिन बदकिस्मती यह है कि उद्योगविहीन जनपद में दिहाड़ी मजदूर रोजगार के लिए भटकने को विवश हैं। रोजगार का निश्चित प्लेटफार्म, सुरक्षा की गारंटी मिले तो वे अपना जीवन ढंग से गुजार सकेंगे। दिहाड़ी मजदूर समाज के सबसे गरीब और कमजोर वर्ग में आते हैं। वे किसी ठेकेदार या मालिक के तहत काम करते हैं। गोराबाजार के हनुमान मंदिर चौराहे पर 'हिन्दुस्तान से बातचीत में उन्होंने अपना दर्द बयां किया। इरफान ने कहा, सुबह उठते ही इस बात की चिन्ता होती है कि आज रोटी का जुगाड...