गाजीपुर, मार्च 1 -- बड़ी संख्या में महिलाओं ने बैंकिंग कॉरस्पांडेंट (बीसी सखी) योजना का रुख इसलिए किया कि उनकी जिंदगी बदल जाएगी। उनके आर्थिक हालात सुधरेंगे। घर-परिवार चलाने में उनका भी योगदान होगा। हुआ इसके बिल्कुल उल्टा। कम मानदेय और सीमित सुविधाओं ने उन्हें निराश कर दिया। वे कहती हैं-'गृहिणी बने रहना ज्यादा सुखद और लाभकारी है। हमलोग इधर के हुए न उधर के। विडंबना यह है कि बैंकिंग सेक्टर में काम करने के बावजूद वे राष्ट्रीकृत बैंकों में खाते नहीं खुलवा सकती हैं। विकास भवन परिसर में 'हिन्दुस्तान के साथ चर्चा के दौरान बीसी सखियों ने कई समस्याएं साझा कीं। बताया कि किस तरह उनका 'बेहतर जिंदगी का सपना टूट गया। उनके मुताबिक प्रदेश में करीब पांच साल पहले 22 मई, 2020 को बीसी सखी योजना शुरू हुई थी। लगा कि घर-घर बैंकिंग सुविधा पहुंचने से महिलाएं आर्थि...