वाराणसी, मई 31 -- वाराणसी। 'पति अक्सर नशे में लड़खड़ाते हुए आते थे। घर-पड़ोस से ताना सुनते थे। बच्चों पर गलत असर पड़ रहा था। आर्थिक हालात खराब हो रही थी। मैंने कई बार कसम दिलाई तो बदले में पिटाई हुई। फिर, पुलिस से शिकायत की और 'उन्हें जेल भेजवा दिया। दो माह बाद 'वो जेल से निकले तो बदल चुके थे। उस वाकये के बाद कई पतियों ने तौबा कर ली नशे से। तय मानिए-गांव हो या शहर, बिना सख्ती के नशाखोरी नहीं छूटती-एक महिला का अनुभव ग्रीन आर्मी की सोच बन चुका है। विश्व तंबाकू दिवस (31 मई) के परिप्रेक्ष्य में ग्रीन आर्मी की सदस्यों के अनुभव और उनकी व्यावहारिक कार्यशैली नशामुक्ति अभियान को सही दिशा दे सकता है, उसे प्रभावी बना सकता है। ग्रीन आर्मी की भूमिका सन-2015 में बनी। तब होप वेल्फेयर ट्रस्ट से जुड़े बीएचयू के विद्यार्थियों का ग्रुप रोहनिया क्षेत्र के खु...