कानपुर, फरवरी 28 -- कानपुर की पहचान ही नहीं शान था होजरी कारोबार। समय ने ऐसी करवट ली कि मिलों का बंद होना शुरू हुआ तो होजरी कारोबार छोटी-छोटी यूनिटों में आ गया। धीरे-धीरे दूसरे प्रदेश-शहर भी कानपुर को प्रतिस्पर्धा देने लगे। सरकार ने मुंह फेरा तो भावी पीढ़ी भी अब होजरी उद्योग से कदम पीछे खींचने लगी। कानपुर अन्य राज्यों से तकनीक में भी पिछड़ने लगा। व्यापारी कहते हैं कि अब तो हमारी समस्याएं भी कचरे के डिब्बे में डाल दी जाती हैं। होजरी कारोबार सिर्फ रोजी-रोटी का जरिया नहीं बल्कि सुख-दुख का साथी भी है। कितनों को इसने पैरों पर खड़ा किया, और नाम, शोहरत, दौलत भी दिलाई। कहते-कहते वरिष्ठ होजरी कारोबारी बलराम नरूला का गला भर आया। वे बहुत कुछ बताना चाह रहे थे इसलिए खुद को संभाला और कहा, आपने होजरी की चमक का दौर नहीं देखा। देश-विदेश में कहीं भी जाते तो ल...