कानपुर, फरवरी 26 -- शादी-बारात हो या सामाजिक-धार्मिक उत्सव, सभी बैंड-बाजे के बगैर अधूरे हैं। बगैर बैंड-बाजा के खुशी का माहौल नहीं बना पाता लेकिन अफसोस की बात है कि उत्सव में संगीत से खुशियों के रंग भरने वाले बैंड-बाजा वालों की जिंदगी बेनूर होती जा रही है। डीजे और आर्केस्ट्रा के शोर में बैंड-बाजे की आवाज धीरे-धीरे मंद होती जा रही है। यही वजह है कि तमाम बैंड संचालक पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे इस व्यवसाय से अब मुंह मोड़ रहे हैं। जो इसमें लगे हैं वे बैंकों से ऋण नहीं मिल पाने की वजह से अपना कारोबार आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। जिले में बैंड-बाजा के करीब 150 संचालक हैं। इनसे 10000 परिवारों की रोजी-रोटी चल रही है लेकिन आज बैंड-बाजा की घटती मांग के चलते इनके सामने दो जून की रोटी का इंतजाम करने का संकट खड़ा हो गया है। कानपुर बैंड-बाजा संचालक वेलफेयर एसोसिएश...