औरंगाबाद, मई 8 -- वेटर समाज के लोग मुख्य रूप से दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं। शादी-विवाह का सीजन, उनके लिए आय का प्रमुख स्रोत होता है। यह भी कुछ महीनों का ही काम है। इस दौरान वे देर रात तक काम करते हैं लेकिन उनकी मेहनत का मोल अक्सर कम आंका जाता है। उन्होंने बताया कि शादी के सीजन में एक दिन की मजदूरी पांच सौ से आठ सौ रुपये तक मिलती है, लेकिन ये काम साल में 3-4 महीने ही मिलता है। बाकी समय खाली बैठना पड़ता है। साल के बाकी महीनों में रोजगार का अभाव एक बड़ी समस्या है। कई वेटर शेष दिनों में छोटे स्तर के काम जैसे रेहड़ी-पटरी पर सामान बेचना, मजदूरी या खेतों में काम करना शुरू करते हैं, लेकिन ये काम भी अनिश्चित और कम आय वाले होते हैं। नतीजतन, परिवार का पालन-पोषण करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है। आर्थिक तंगी के साथ-साथ वेटर समाज को सामाजिक उपेक्षा...