एटा, मार्च 3 -- सर्दी के मौसम के बाद फाल्गुन माह आते ही लोगों की जुबान पर होली की मल्हार सुनाई देती थीं। शाम होते ही गांव में जगह-जगह टोलियां बैठकर ढोलक की थाप पर हंसी मजाक लपेटे हुई होली गाई जाती थी। गीत खत्म होते एक स्वर में आवाज गूंजती थी कि होली है भई होली है। यह परंपरा पूरी तरह से विलुप्त होती जा रही है। न गांव में अब ढोलक बजाने वाले बचे और न ही होली का रियाज करने वाले शौकीन। गाने के माध्यम से एक दूसरे की होली का जबाव दिया जाता था। हिन्दुस्तान की टीम ने बसुंधरा गांव के बुजुर्गों से ये बात पूछी तो उनकी आंखों नम सी हो गईं। कहा कि अब वह बात और समय कहां, अब तक मोबाइल से ही सभी शौक लोग पूरे कर लेते हैं। जहां पहले होली से गांवों की चौपालों और गलियों में फाग और ढोलक की गूंज सुनाई देती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा है। फाग गायन और रियाज की परंपरा...