उरई, फरवरी 19 -- उरई। महंगी मिट्टी, मेहनत अधिक और खरीदार कम। मिट्टी की कमी और लागत न निकलने का डर। भंडारण के साथ मार्केट न होने से कुम्हारों की प्रगति पर ब्रेक सा लगा है। कुंभकार इस तरह की तमाम चुनौतियों से गुजर रहे हैं। दीवाली और अन्य त्योहारों को छोड़कर मिट्टी के बर्तनों से लोगों का मोह भंग हो रहा है। कुंभकारों का कहना है कि प्रशासन उनके बनाए सामान की खरीदारी करे तो उनके लिए हर रोज त्योहार हो। सभी ने एकसुर में कहा कि हम मिट्टी में रंग भरते हैं लेकिन हमारी जिंदगी ही बदरंग हो गई है। मिट्टी के लिए दिए गए पट्टों पर कब्जा हो गया है। परंपरा के साधक हैं। परंपरा में रंग भर रहे हैं, लेकिन जीवन बदरंग है। आर्थिक स्थिति आज भी जस की तस है। जैसे-जैसे समय का पहिया रफ्तार पकड़ रहा है, वैसे-वैसे चाक की रफ्तार धीमी होती जा रही है। वजह, प्रशासनिक उपेक्षा और...
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