उरई, फरवरी 17 -- उरई। सेवानिवृत्ति के बाद केवल हमारी दिनचर्या ही नहीं बदलती बल्कि उन लोगों का व्यवहार भी बदल जाता है, जिनके साथ हमने काम करते हुए वर्षों बिता दिए। रिटायरमेंट जीवन का सबसे अहम पड़ाव है, लेकिन इससे भी अधिक कष्टप्रद पूर्व सहकर्मियों का असहयोग होता है। तभी तो हम पेंशन के लिए उसी चौखट के चक्कर काटते हैं, जहां कभी ठाठ से बैठकर अपनी सेवाएं देते रहे। अफसर अनजानों की तरह बर्ताव करते हैं। दो दिन तो कभी दो हफ्ते बाद आने के लिए कहकर टरका दिया जाता है। पेंशनरों के पास अपनी पीड़ा सुनाने के लिए कोई प्लेटफार्म नहीं है। इनकी समस्याएं सुनने के लिए न तो हेल्प डेस्क है और न ही नोडल अफसर। दोहरे टैक्स, ग्रेच्युटी, पेंशन, जीपीएफ और चिकित्सा प्रतिपूर्ति का समय से भुगतान न होने पर दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। 60 साल तक विभागों की जिम्मेदारी को अपने...