उन्नाव, फरवरी 17 -- महंगी मिट्टी, मेहनत अधिक और खरीदार कम। मिट्टी की कमी और लागत न निकलने का डर। कुंभकार इस तरह की तमाम चुनौतियों से गुजर रहे हैं। दीवाली और अन्य त्योहारों को छोड़कर मिट्टी के बर्तनों से लोगों का मोह भंग हो रहा है। कुंभकारों का कहना है कि प्रशासन उनके बनाए सामान की खरीदारी करे तो उनका हर रोज पर्व हो। आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तान से अपनी पीड़ा साझा करते हुए सभी ने एकसुर में कहा कि हम मिट्टी में रंग भरते हैं लेकिन हमारी जिंदगी ही बदरंग हो गई है। नई पीढ़ी इस काम में रुचि नहीं ले रही है। शासन की योजनाओं से भी हम लोग वंचित नजर आते हैं। सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाएं अधिकारियों की फाइलों में ही दबकर रह जाती हैं और हम लोग सिर्फ चक्कर ही काटते रहते हैं। आधुनिकता की इस दौड़ में कुम्हारों के बर्तनों की मांग कम हो गई है। कुम्हारों क...